शनिवार, 27 जनवरी 2018

ताकत स्वीकार करने की (PowerofAcceptance) ...

1. बेटा पिता के आगे स्वीकार नहीं करता कि वो पढ़ाई में कमजोर है.
2. Employees Boss के आगे स्वीकार नहीं करता की उससे गलती हुई है.
3. बहु सास के आगे स्वीकार नहीं करती कि दाल में नमक ज्यादा पड़ गया है.
4. Student Teacher के आगे स्वीकार नहीं करता की उसकी English या Maths कमजोर है.
5. दोस्त स्वीकार नहीं करता की उसका उसकी Wife के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं हैं.
6. पति पत्नी आपस में स्वीकार नहीं करते कि गलती उनमें से किसी एक की है.
7. डर क्या है : अनिश्चितता को स्वीकार न करना. 
धानुक दर्पण
8. ईर्ष्या, नफ़रत क्या है : दूसरों की अच्छाई को स्वीकार न करना.
9. क्रोध क्या है : दूसरे का हमारी बात को स्वीकार न करना.
10. इस तरह की न जाने कितने ही घटनाएँ स्वीकार न करने की हमारे साथ होती रहती है.
तो मित्रों जब कोई स्वीकार ही नहीं करेगा तो समाधान कहाँ से निकलेगा, वहां तो Negativity ही Negativity का निवास होगा।
मित्रों Positive Energy तब बहेगी जब कोई स्वीकार करेगा कि हाँ हमारे अंदर कमी है या हमसे गलती हुई है.
इंसान भी जिंदगी में बड़ी बड़ी समस्याओं की वजह से परेशान नहीं हैं, हम परेशान रहते हैं रोज़ रोज़ की छोटी छोटी समस्याओं की वजह से.
इन छोटी छोटी समस्याओं का समाधान तो है जिससे ये समस्याएं हमें परेशान न करें, मित्रों उसके लिए हमारे अंदर स्वीकार(Accept) करने के ताकत होनी चाहिए।
क्या हमारे अंदर इतनी ताकत है कि हम दूसरों को उसी रूप में स्वीकार करें जैसे वे हैं और उनकी गलतियों के लिए इतनी जल्दी माफ़ कर देजितनी जल्दी हम उपरवाले से अपनी गलतियों के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं" ?
किसी भी moment में "Unconditional Acceptance" का मतलब है Negativity को वहीं पर "Stop करना", Problem को "महामारी न" बनने देना.
जैसे ऊपर वाले सारे Examples को एक बार फिर देखते हैं :-
1. क्या हुआ अगर कोई पढ़ाई में कमजोर है ? Concept clear न होने पर हर कोई कमजोर ही होता है. बेटे के स्वीकार करने पर दोनों पिता और पुत्र पढ़ाई का कोई नया तरीका अपनाते.
2. क्या हुआ अगर गलती हो गयी ? Employee के स्वीकार करने पर Boss भी उस employees को उसके level का काम देता और employee भी अपनी Knowledge increase करने का प्रयास करता.
3. क्या हुआ अगर खाना ख़राब बन गया ? इंसान से गलतियां होती रहती है. बहु के स्वीकार करने से सब जगह शांति हो जाती.
4. Student के स्वीकार करने पर दोनों Teacher और Student पढ़ाई का कोई नया तरीका ईजाद करते.
5. Problem solve करने के लिए दोस्त ही कोई तरीका बताता.
6. अपनी अपनी गलती मान लेने से दोनों अपनी Future planning पर ध्यान देते.
7. अगर हम अनिश्चितता को ही स्वीकार कर लें तो फिर डर काहे का.
8. जिस तरह नमक और चीनी के mixture में से चीटीं सिर्फ अपने काम की चीज चीनी उठाती है, उसी तरह दूसरे इंसान की अच्छाइयां उठाते ही उससे ईर्ष्या, नफ़रत सब ख़त्म हो जाती है.
9. दूसरे की सहनशीलता देखते ही, काहे का क्रोध।
मित्रों अपनी "गलती स्वीकार न करना एक बीमारी" है और ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें आदमी खुद तो परेशान रहता ही रहता है, उससे जुड़े दूसरे लोग भी बहुत परेशान रहते हैं. हमें जिंदगी में किसी को हराने के लिए ताकत दिखाने के बजाये, अपनी "स्वीकार करने की ताकत" दिखाते और बढ़ाते हुए अपने को निखारना ही होगा.
मित्रों ध्यान रहे जो बीत गया उस पर कभी भी पछतावा न करें क्योँकि "जब आपने वो काम किया था तब आप उसे करना चाहते थे", फिर पछतावा किस बात का. अब तो बारी है कि अगर कुछ गलत हो गया है उसको "स्वीकार करके" दुरुस्त किया जाये।
स्वीकार न करके हम अपने आस पास एक Negative Aura (प्रभामण्डल) तैयार कर लेते है और फिर जिंदगी भर उस Negative Aura से बाहर आने की ही जद्दोजहत में जिंदगी गुजार देते हैं.
हमें "Accept करने की ताकत" को समझना पड़ेगा।
अपनी गलतियों को Accept न करने का मतलब है कि अपने मोबाइल की contact memory का उन पुराने बेकार contact नंबरों से भर जाना, जिनका आज की date में कोई लेना देना नहीं है. मित्रों जब तक वो पुराने नम्बर हम delete नहीं करेंगे तब तक नए नम्बर save करने के लिए जगह नहीं बनेगी.
इसी तरह अपनी जिंदगी से भी हमें ऐसे पुराने हादसों को माफ़ी मांग कर या माफ़ करके delete करना पड़ेगा तभी हम नई खुशनुमा यादों के लिए जगह बना पाएंगे क्योँकि पुरानी गलतफमियों को अभी तक हमने "स्वीकार न" करके संभाल कर रखा है. हमें उन पुरानी गलतफमियों को "स्वीकार कर" उन्हें delete करके Positivity के Aura में कदम रखना ही होगा.

मित्रों, अगर जींदगी मे कुछ पाना हो. तो .... तरीके बदलो.. ईरादे नही

.....AMIT KATHERIYA

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