भारत में अंग्रेजी राज ना होता तो कट्टरपंथी हिन्दू और इस्लाम शासक दुर्बल
वर्ण और नारी जाति पर दमनकारी परंपराओं को आज भी लादे होते ,और इन्हें
शिक्षा से वंचित रखते,।
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आजादी के इक्कत्तर वर्षों के वाद भी कुछ राज्यों का मौजूदा हालात में शिक्षा का गिरता स्तर, गिरती कानून व्यवस्था इन शंकायो के प्रत्यक्ष प्रमाण है।
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अंग्रेजों को बुरा क्यों कहते हो, उन्होंने इंसानियत के लिए जो अल्पकाल
मे कर दिया, हिन्दू और मुस्लिम शासक युगों युगान्तर में भी नहीं कर सके,और
जो वो दे गये उस पर आज के शासक गर्रा रहे हैं ,और ऊधम मचाये हुए है ।
🐫
अच्छे कार्यों, अच्छे शासक और अच्छे भूतकाल का आदर भविष्य के प्रगतिमार्ग
प्रशस्त करता हैं, फिर भी ना जाने क्यों लोग सत्य को झूठलाते हैं
❓
🐫
ना समझ लोग अंग्रेजों को बहुत गलत बताते हैं और अंग्रेजों को बहुत बुरा
भला कहते हैं। लेकिन महान क्रन्तिकारी समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले
ने कहा था कि *अंग्रेज शूद्र/अतिशूद्र के लिए भगवान बनकर आये है.* अर्थात
दुर्बलो और तिरस्कार किये गये समुदाय के *असली दुश्मन* अंग्रेज नहीं
*ब्राह्मण हैं* जिन्होंने इनको शिक्षा ,सत्ता ,सम्पत्ति और सम्मान से दूर
रखकर *हजारो साल से शोषण किया है |*
🐫अतः
शुद्रो को ब्राह्मणों की धार्मिक गुलामी से मुक्ति चाहिए तो *ब्राह्मणों
द्वारा थोपे गए मान्यता परम्परा और संस्कारो को नकारना होगा ।*"
🐫 मैं कुछ जानकारी देना चाहता हूं जरूर पढें ।
कि *अंग्रेजों ने कितने पाखंडों पर रोक लगाने में कामयाबी पायी...*
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१) *रथयात्रा* :- जगन्नाथ में हर तीसरेवर्ष यह यात्रा निकाली जाती है जिसमें स्वर्ग पाने के चक्कर में रथ के पहिये के नीचे आकर सैकडों लोगों की जान चली जाती थी, कानून बनाकर बंद की ।
२) *काशीकरबट* :- काशी धाम में ईश्वर प्राप्ति हेतु विश्वेश्वर के मंदिर के पास कुए में कूद कर जान देते थे बंद कराई गयी ।
३) *चरक पूजा* :- काली के मोक्षाभिलाषी उपासक की रीड की हड्डी में लोहे की हुक फसा कर चर्खी में घुमाया जाता है जबतक कि उसके प्राण न निकल जायें इसे 1863 में कानून बनाकर बंद कराया ।
४) *गंगा प्रवाह* :- अधिक अवस्था बीत जाने पर भी संतान न होने पर गंगा को पहली संतान भेट करने की मनोती पूरी होने पर निष्ठुर होकर जीवित बच्चे को गंगा में बहा देना कितना कठोर काम है 1835 में कानून बनाकर बंद किया ।
५) *नरमेध यज्ञ*:- रिग्वेद के आधार पर अनाथ या निर्धन बच्चे की यज्ञ में बली चढाने की प्रथा को 1845 मे एक्ट 21 बनाकर बंद किया गया ।
६) *महाप्रस्थान* :- पानी में डूब कर या आग मे जलकर ईश्वर प्राप्ती की इच्छा से जान देने की प्रथा भी कानून बनाकर बंद की।
७) *तुषानल* :- किसी पाप के प्रायश्चित के कारण भूसा या घास की आग में जलकर मरने की प्रथा कानुन बनाकर बंद की ।
८) *हरिबोल* :- यह प्रथा बंगाल में प्रचलित थी। मरणासन्न व्यक्ति को जब तक गोते खिलाये जाते थे तब तक वह मर न जाये और हरिबोल के नारे लगाते थे यदि वह नही मरा तो भी उसे वहीं तड़फने के लिए छोड़ देते थे उसे फिर घर नहीं लाते थे 1831 में कानून से बंद की ।
९) *नरबलि* :- अपने इष्ट की प्राप्ती पर अपने ईष्ट को प्रसन्न करने के लिए मानव की सीधी बली को भी अंग्रेजों ने बंद किया पर यह प्रथा यदाकदा आज भी चालू है ।
१०) *सतीदाह* :- पति के मरने पर पति की चिता के साथ जल करमरने की प्रथा को 1841 में बंद किया ।
११) *कन्यावध* :- उडीसा व राजपूताना से कुलीन क्षत्रिय कन्या पैदा होते ही मार देते थे इस भय से कि इसके कारण उन्हे किसी का ससुर या साला बनना पडेगा 1870 में कानून बनाकर बंद की ।
१२ ) *भृगुत्पन्न* :- यह गिरनार या सतपुडा में प्रचलित थी ।
अपनी माताओं की मनौती की कि हे- महादेव! हमें संतान हुई तो पहली संतान आपको भेंट देंगे और इसके तहत नव- युवक अपने को पहाड़ से कूदकर जान देते थे :: कानून बनाकर बंद की ।.
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🐫
ये है कथित हिन्दू धर्म संस्थापको की बनाई कुछ दिल देहलाने, और इंसानियत
को शर्मशार करने वाली प्रथायें । जिन पर अंग्रेजी हुकूमत ने बन्दिश लगायी
थीं ।
🐫 अंग्रेजी हुकूमत जाति और वर्ण व्यवस्था का खात्मा करते तभी आजादी की मुहिम शुरूआत हुई और यह सामाजिक दंश आज भी प्रचण्य है ।
🐫क्या
सभी वर्णो के बुद्धिजीवियों, विचारको को जो हिन्दू धर्म के परिचालन हेतु
प्रयास रत हैं, निम्नलिखित खामियों पर समयानुकूल विचार विमर्श नहीं करना
चाहिए।
👉🏾हिन्दू धर्म में वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य शूर्द)
यानी वर्ण में शूद्र,
शूद्र में जाति,
जाति में क्रमिक उंच नीच...
🐫 और ब्राह्मण के आगे सारे वर्ण य़ानी जन्म से ही क्षत्रिय,वैश्य और शूर्द .............नींच ...
🐫
यह व्यवस्था कायम करते वक्त यह कभी विचार नहीं किया गया होगा , कि ये वर्ण
व्यवस्था एक दिन मानवता को कंलकित करेगी , जिसे सुधारने का जितना प्रयास
किया जाता है।
अलगाववादी ताकते उससे कयीगुना अधिक जोर से वरकरार रखने की कवायत करने लगती हैं ।
और
इंसानियत की सबसे बड़ी शत्रु वर्ण व्यवस्था ही पक्ष धर बन जाती है ।
🐫 अब तुम्ही सोचो , सभी गर्व से कैसे कहें कि हम हिन्दू हैं ।
🐫
ब्राह्मण क्या ? अन्य वर्ण भी शूर्द को , वो स्थान और अपनत्व नहीं देना
चाहते , जो उन्होंने वर्षों से मुस्लिमों और ईसाइयों को सहर्ष दिया हैं और
उनसे "रोटी - बेटी" का रिश्ता शदियो पूर्व स्वीकार कर लिया है ।
🐫 तो फिर इन्हें यानी शूर्दो को हिन्दु बनाये रखने की कवायत क्यो ?
और
🐫
शूर्दो के द्वारा भी "घोर अपमानित निम्न स्थान " के वावजूद हिन्दू धर्म और
इसकी मान्यताओं को मनाना और इसे अपनाने या त्यागने या त्यागने ना देने की
जद्दोजहद क्यों ?, कोन ? किस लिये ? कर रहा है ।
कभी किसी बुद्धिजीवियों ने विचार किया ?
शायद नहीं।
आखिकार क्यों नहीं ??
🐫
क्योंकि , धर्म के परिचालन हेतु बुद्धि हीन भीड़ की जरूरत होती है , जो
विना विचारे माने ,समय दे सके और प्रचार प्रसार कर के धर्म स्थलों को
व्यापारिक केन्द्र बनवाए / स्थापित करने में सहयोग करें, और जेहाद की
स्थिति में आगे आये और कुर्बानी दे सकें।
🐫
इस कार्य में यानी भीड़ जुटाने के लिए चाहे चुनावी रैली हो या धार्मिक
समागम :: इस " नाशुर्के कार्य हेतु " शूर्दो का हिन्दू धर्म क्या सभी
धर्मों और राजनीतिक दलों मे सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है ,एकाधिकार है, यह
किसी अन्य वर्ण और जाति को नहीं दिया जाता है ।
🐫
जिस दिन ये भीड़ अपनी " अहमियत " समझ जायेगी , उसी दिन, "जातिवाद "और
धार्मिक उन्माद का पोषण ही समाप्त नही हो जायेगा, बल्कि सदियों से हो रहे
एक विशाल संप्रदाय का उत्पीड़न, शोषण पर भी अंकुश लग जायेगा !
🐫 इसलिए वक्त रहते धर्म के ठेकेदारों हठधर्मिता, अंधविश्वास, मनगडन्त कथा , कथानक त्यागो, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनायो, जातिवाद तोड़ो.
..और
समाज जोड़ो.....
..... तभी गर्व से बोलो हम हिन्दू हैं।
🐫 वर्ना विरोध बुलन्दियो पर कुछ यों होगा :-
🌺 *मन्दिर नहीं !
शिक्षा ,रोजगार, घर और परिवार चाहिए*
❗
🌺 *धर्म नहीं !
सम्मान, समान अधिकार और भाई चारा चाहिए*![](https://www.facebook.com/images/emoji.php/v9/f50/1/16/2757.png)
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🌴 AMIT KATHERIYA
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आजादी के इक्कत्तर वर्षों के वाद भी कुछ राज्यों का मौजूदा हालात में शिक्षा का गिरता स्तर, गिरती कानून व्यवस्था इन शंकायो के प्रत्यक्ष प्रमाण है।
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कि *अंग्रेजों ने कितने पाखंडों पर रोक लगाने में कामयाबी पायी...*
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१) *रथयात्रा* :- जगन्नाथ में हर तीसरेवर्ष यह यात्रा निकाली जाती है जिसमें स्वर्ग पाने के चक्कर में रथ के पहिये के नीचे आकर सैकडों लोगों की जान चली जाती थी, कानून बनाकर बंद की ।
२) *काशीकरबट* :- काशी धाम में ईश्वर प्राप्ति हेतु विश्वेश्वर के मंदिर के पास कुए में कूद कर जान देते थे बंद कराई गयी ।
३) *चरक पूजा* :- काली के मोक्षाभिलाषी उपासक की रीड की हड्डी में लोहे की हुक फसा कर चर्खी में घुमाया जाता है जबतक कि उसके प्राण न निकल जायें इसे 1863 में कानून बनाकर बंद कराया ।
४) *गंगा प्रवाह* :- अधिक अवस्था बीत जाने पर भी संतान न होने पर गंगा को पहली संतान भेट करने की मनोती पूरी होने पर निष्ठुर होकर जीवित बच्चे को गंगा में बहा देना कितना कठोर काम है 1835 में कानून बनाकर बंद किया ।
५) *नरमेध यज्ञ*:- रिग्वेद के आधार पर अनाथ या निर्धन बच्चे की यज्ञ में बली चढाने की प्रथा को 1845 मे एक्ट 21 बनाकर बंद किया गया ।
६) *महाप्रस्थान* :- पानी में डूब कर या आग मे जलकर ईश्वर प्राप्ती की इच्छा से जान देने की प्रथा भी कानून बनाकर बंद की।
७) *तुषानल* :- किसी पाप के प्रायश्चित के कारण भूसा या घास की आग में जलकर मरने की प्रथा कानुन बनाकर बंद की ।
८) *हरिबोल* :- यह प्रथा बंगाल में प्रचलित थी। मरणासन्न व्यक्ति को जब तक गोते खिलाये जाते थे तब तक वह मर न जाये और हरिबोल के नारे लगाते थे यदि वह नही मरा तो भी उसे वहीं तड़फने के लिए छोड़ देते थे उसे फिर घर नहीं लाते थे 1831 में कानून से बंद की ।
९) *नरबलि* :- अपने इष्ट की प्राप्ती पर अपने ईष्ट को प्रसन्न करने के लिए मानव की सीधी बली को भी अंग्रेजों ने बंद किया पर यह प्रथा यदाकदा आज भी चालू है ।
१०) *सतीदाह* :- पति के मरने पर पति की चिता के साथ जल करमरने की प्रथा को 1841 में बंद किया ।
११) *कन्यावध* :- उडीसा व राजपूताना से कुलीन क्षत्रिय कन्या पैदा होते ही मार देते थे इस भय से कि इसके कारण उन्हे किसी का ससुर या साला बनना पडेगा 1870 में कानून बनाकर बंद की ।
१२ ) *भृगुत्पन्न* :- यह गिरनार या सतपुडा में प्रचलित थी ।
अपनी माताओं की मनौती की कि हे- महादेव! हमें संतान हुई तो पहली संतान आपको भेंट देंगे और इसके तहत नव- युवक अपने को पहाड़ से कूदकर जान देते थे :: कानून बनाकर बंद की ।.
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यानी वर्ण में शूद्र,
शूद्र में जाति,
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अलगाववादी ताकते उससे कयीगुना अधिक जोर से वरकरार रखने की कवायत करने लगती हैं ।
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कभी किसी बुद्धिजीवियों ने विचार किया ?
शायद नहीं।
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समाज जोड़ो.....
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शिक्षा ,रोजगार, घर और परिवार चाहिए*
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सम्मान, समान अधिकार और भाई चारा चाहिए*
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