शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

राजा धनक कि कहानी
राजा धनक के चार पुत्र थे (1)कृतवीर्य (2)कृतग्नि (3)कृतवर्मा (4)कृतौजा। इनमें से बड़े पृतवीर्य को राजगद्दी मिली शेस-3 पुत्र के बारे में धार्मिक ग्रंथ मौन है। इनके बारे में किसी भी ग्रंथ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। संभवत इन तीनों राजकुमारों ने अपने पृथक् राज्य की स्थापना कर राज्य शासन चलाया कहीं-कहीं पढ़ने को मिलता है कि राजा धनक के पुत्रों ने हिमाचल तक अपने राज्य का विस्तार किया था उन तीनों युवराज का क्या हुआ क्या वह अपने भाइयों के अधीन कार्य करते थे अथवा उनको अलग से राज्य देकर दूसरे राज्य में भेज दिया गया अथवा उन्हें समाप्त कर दिया गया जैसे प्राचीन काल में प्रथा थी कि बड़े बेटे को राज गद्दी श ौप कर राजा बन प्रस्थान में चले जाते थे यह संभव है कि राजा धनक ने अपना राज्य अपने लड़के को शौपकर वन प्रस्थान में चले गए और ईश्वर की तपस्या में लीन हो गए वहां पर भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें शक्ति प्रदान की और वह शक्ति थी धनुष बान।
यह शक्ति राजा धनक द्वारा अपने शेष पुत्रों को दे दी गई इन पुत्रों ने अपने पिता राजा धनक के नाम पर अपना पृथक से धनक वंश चलाया किंतु वे अधिक शक्तिशाली नहीं रहे और उनके राज्य का शीघ्र पतन हो गया आतः किसी भी ग्रंथ में उनका उल्लेख नहीं मिलता है राजा जनक की राजधानी महिष्मति (महेश्वर) थी उनका राज्य विदर्भ एवं वैदेही तक फैला हुआ था। इनके राज्य में जहाजों से व्यापार होता था जो यूरोप के बाजार तक फैला हुआ था उनका रास्ता नर्मदा नदी के द्वार था। 

कठेरिया

धानुक समाज के टाइटल
धानूक एक राष्ट्रीय जाती है,
जों सम्पूर्ण भारतवर्ष में अथवा नेपाल ,
में पायी जाती हैं ,
यह जाती बिभिन्न प्रदेशों मे बिभिन्न नामो बिभिन्न उपजातीयों बिभिन्न गोत्रों
अथवा अलग अलग टाईटलों से इस्थीत हैं।
जैसे:- धानुक, धानक, धनूका, धनिक, धनवार,धेनक, धनुर, धनकया, धनेधर, धनूधारि, धनुष, क्षत्रीय, धानूष, धनुराया, धाकड़ा, धनूवंशी,धनवन्त, धनन्जय, धनकड, धानड़, धकडे, धांची, कठ, कठेरिया, कैठिया, कथेरिया, कोरी, गोरवी, जुलाहे, वसोड, वर्गी, बरार, वंशकार, वास्को, साइस, वावन, मंडल, मेहता, महतो, पटेल, महाशय, पंडवी, तलवी, रावत, राउत, हजारी, लकरीहा, भूसेली,
आदी नामो से जानै जाते हैं।
आसल मे व धानुक/धनक हि हैं।
आप सभी भाईयों से अनूरोध है कि इस मैसज को इतना सैर करें कि एक एक धानूक भाई तक पंहूच जाए,
धानूक समाज को एकत्रीत करने मे हमारा मदद करें?????

कठेरिया

वीर धानुक समाज
ताम्रपत्रों, शिलालेखों से एवं अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से प्रमाणित होता है कि धानुक वीर धनुर्धर जाति रही है, जो कि सेना के अग्र भाग में चलती थी। युद्ध जीतने के लिये जहाँ-जहाँ राजा गए वहाँ पर इस जाति के लोग गए और उन्होंने वहि अपना निवास बना लिया।
भारतीय इतिहास में पानीपत में तीन युद्ध हुवा हैं। तीसरे युद्ध में दक्षिण से सेना उत्तर की और गई है। तीसरा पानीपर का युद्ध 1726 में हुवा, जिसमें दक्षिण से पेशवाओं ने अपनी सम्पुर्ण सेना लेकर उत्तर में आक्रमण किया और वे हार गए।ऐसे में वीर धनुर्धर धानुक सैनिक उत्तर में जाकर बस गए


धानुक दर्पण
बिहार में प्रचलित गाथा के अशुसार कन्नौज के परिहार राजा महिपाल चाप वंशीय थे।
उनके सामंत धरनी एवं चाठियावाड़ के एक भाग के स्वामि थे। इसका प्रमाण म.प्र. के माधोगढ जिला भिंड से प्राप्त पाम्रपत्र से होती है। ई. सं. 672 सन् 694 में कन्नौज के परिहार राजाओं का है, जिसमें उल्लेख है कि एक दिन पृथ्वी ने भगवान् शंकर से निवेदन किया कि मेरी दुष्टों से रक्षा कीजीये तब भगवान शंकर ने अपने धनुष कि चाप से एक वीर को पैदा किया, जो कि धानुक कहलाये और उन्होंने पृथ्वी की दुष्टों से रक्षा की।
......................................................................................AMIT KATHERIYA
धानुक समाज की प्रकृति....
बिना समाज विकास के आप जीत की कामना नही कर सकते विकास ही नही और भी बहुत सारे मुद्दे है। अब वह दिन दुर नही जब बिहार मे भी पताका फहरायेगा धानुक समाज का, लेकिन अभी इसकी पहल कहा जाय तो बेमानी होगी हमारे अपने बिहार मे अपनी जाती के बहुत नेता हुए उन्होने धानुक जाती का नाम ले कर भवसागर पार कर ली परन्तु हमे सागर मे ही छोड़ दिया। जिसका परिणाम यह हुआ की आज हमे इतना संघर्ष करना पर रहा है मैं अभी भी कहना चाहता हूँ की इस लड़ाई को राजनिति की बली नही चढ़ने देगे इसका ध्यान रखना होगा। यह लड़ाई एक पारम्पपरिक लड़ाई है नेतृत्व की बात की जाये तो पहल कही ना कही से तो करनी होगी और जो भी पहल कर रहे है उन पर हमे विस्वास की डोर जमाये रखनी होगी चाहे नेतृत्व आप करे या हम। अपने बिहार मे ही अभी तीन संगठन काम कर रहा है लेकिन सबका उदेश्य एक ही है। लेकीन जब उनसे हमने बात की तो सब की अपनी राय है। सब एक दुसरे पर दोषारोपन ही कर रहे है क्या यह उचित है जब धारा एक है तो हम सभी विपरित धारा में क्यो बह रहे है, और इसका मुल कारण है आपसी विश्वास की कमी। इसीलिए मैं कहता हूँ पहले हमे एक दुसरे पर विस्वास करना सीखना होगा। हमारे अपने मे ही विस्वास की इतनी कमी है की चाह कर भी हम विस्वास का डोर नही थाम पा रहे है क्या कारण है हम इतने जलनशील है की यह ताप हमे या हमारे विस्वास को जलाने मे सक्षम है अभी इस मुद्दो पर बहुत सारे दोस्तो से बात हुई उनका इशारा बहुतो की ओर था, मैं नाम नही लेना चाहता हूँ हमने बहुत जाती के नेताओ को देखा है जो भी हमारे नेता है उससे भी ज्यादा गिरे हुए है पर क्या हम कभी उसकी आलोचना करते है या कभी नकी जाती के ही लोग उसकी आलोचना करते देखा है आपने, तो नही और गलती से उनके नेता का उसके सामने आपने गलत कह दिया तो समझ लिजिये क्या से क्या होने का डर सताने लगेगा क्योकी वह कितने ही बुरे है पर वह उसके नेता है लेकीन हमारे साथ ऐसा नही होता है लोग तो विरोध करते ही है हम भी विरोध करने लगते है जिससे बसा बसाया समाज फिर एक होने के लिए तरसते रहते है हमे भी मन मे विस्वास लाना होगा की हम जिसके नेतृत्व म चल रहे है वह हमारे लिए परम सार्थ है हमे कही सुनी बातो को भुलना होगा हमे जड़ की नही जमात की जरूरत है हमे टकराव नही दोस्ती की जरूरत है हमे अंह की नही अंह मिटाने की जरूरत है तभी हम कल्पना कर सकते है, इस समाज निर्माण का संयम रखते हुए।
कही पर एक मुद्दा चल रहा था की आरक्षण खत्म होना चाहिये मैं भी सहमत हूँ इस मुद्दे पर, लेकिन उस से पहले बहुत चीजों पर विचार किया जाये। क्या भारत मे सबको समानता का अधिकार मिला हुआ है? इस पर गौर करने वाली बात भी है आज भी भारत मे ऊँची जाती के लोगो का बोल बाला है वह उन कुर्सी पर बैठे है जहाँ से नीती तैयार होता है और भारत के गरीबो पर थोपा जाता पहले उसे खतम करे भारत मे समानता अधिकार के चलते सब ऊँची जाती और निचली जाती के बच्चे एक साथ वहाँ शिक्षा प्राप्त करे जहाँ अधिकांश बच्चे (सरकारी स्कुल) में शिक्षा ग्रहण करे तब आप कहे की आरक्षण गलत है वह नही हो सकता है क्योंकि आपके बच्चे प राइवेट स्कुल में पढ़कर साहेब बन कर हुकूमत करेंगे हमारे बच्चे सरकारी स्कुल मे घिस घिस कर पढ़ने के बाद सब दिन गुलामी करेगे तो यह समानता बनाये, मैं भी आरक्षण की बात नही करुंगा जब यह संभव नही तो हमे मिलने वाला अधिकार देना होगा।
जिस बात को कभी जान अगर पाता हूँ तो प्रयास करता हूँ की कही से शिक्षा मिल जाये पर कुछ लोग नही अपना ज्ञान को ही वह सर्वोपरी मान बैठे है जिसका परिणाम यह हो रहा की वह तोड़ते ज्यादा है, जोड़ना भुल गये है वह अपना अधिकार दुसरो के लिए उपयोग करते है अपना ही अधिकार पाने मे शर्म महसुस कर रहे है क्या यह नैतिक सवाल हमे मिलने या आगे बढ़ने देगा मन क्षुब्ध हो जाता है क्या इसी के लिए हम आप इतना मेहनत करते है ी हम संजोये और कुछ आ कर बिगाड़ दे हमारे गाँव के कुछ लोगो ने फोन किया भैया आप समाजीक चेतना की बात करते है और आपके ही ग्रुप मेम्बर ताना खिच रहे है इस लिए सब्र का बॉन्ध टुट गया सा लगता है। समाज की बातो को जोडने का कम, तोड़ने का ज्यादा चल रहा है। क्या इसी के लिए समाज निर्माण किया गया था की समाज को जगाया जाय। मैं पहले ही कहा था की समाज मे अनेको लोग है सभी की विचार धारा अलग हो सकती है पर भावना नही पर अपनी जाती का जो संस्कार है हम उससे अलग नही हो पाते है जलन और टांग खीचना क्या यही हमारी मानसिकता रह गई है।
आप अपनी भ्रमित सोच को निजी सोच मे तब्दील कर रहे है अगर आप कहते है फलां आदमी अपने निजी स्वार्थ के लिए यह काम कर रहा है और उसी सोच को आप हम सभी के बीच रख रहे है जो उचीत नही है पहले उन विरोधी भाई से भी आग्रह करूगा की हम नही जमीन पर आप ही अवाज तो उठाओ हम सभी आपके साथ है पर ऐसा नही आप सिर्फ एक शिगुफा छोड़ देना है की पहला आदमी आप को युज कर रहा है और हम अपने मे लड़ रहे है हमे सवाल नही समाज॒ से जुड़ना है लगता है जैसे कुछ नही हो सकता इस समाज का यहा ज्ञानी तो पैदा होते है पर संस्कार पैदा नही हो रहा है क्यो इतना माथापच्ची करे। मैं यह कहना चाहता हूँ की जब हम सभी के इतना मेहनत करने के बाबजुद ये लोग इसी तरह उधम मचाये रखेंगे तो फिर समय क्यो बरबाद करूँ हम एक दुसरे के भावनाओ को समझ नही पा रहे हम एक दुसरे को शक की निगाहो से देख रहे है हम चाह कर भी आगे की राह पर गौर नही कर रहे है मन की शंका आने पर कही ना कही समाजिक द्वन्द की राजनिती कर रहे है यह हम सभी की परीक्षा की घड़ी है हम डिगे समझ लीजिये यह संघ डिगा, एक बात और जो भी हो रह है उसमे कही कोई गलत नही है लेकिन उसे बार बार उजागर करगे तो उस जगह को तो कुछ नही होगा पर पर यह संघ कभी स्थापित नही हो पायेगा जरा अपने अंतर्मन से सोचिये। सच मानिये कुछ लोग ऐसी बाते कर अपना स्वार्थ साध रहे है इसलिए हमे एकजुटता का परिचय देना होगा हमे हर एक दुसरे के सुख दुख मे साथ देना होगा और यह जो कारवां चल रहा है बिना गतिरोध से चरम तक ले जाने की हम सब की पुर्ण जिम्मेदारी बनती है। अब फैसला करना है हम सभी को इसे आगे ले जाना है या आपसी मतभेद से इसे यहीं छोड़ना है।
हमे अपने पुर्ण ताकत का परिचय देना होगा हमे वह हर पहलू पर गौर करना हे जो समाज हित मे हो किसी भी छोटी से छोटी मीटिंग में भी उन सारे विषय पर चर्चा करना है। कैसे जनसमुह को तैयार किया जाय, कैसे संगठन को मजबुती प्रदान करना है, संगठन के लिए कैसे धन उपार्जन किया जाय, बाहर रह कर हम समाज को केसे संगठित कर पाये, बिहार मे होने वाले आन्दोलन को कैसे गति प्रदान क़ी जाय, इन सभी पर चर्चा करती रहनी पड़ेगी। हम किसी बात को यू ही ले लेते है और कभी कभी उसका अर्थ अपने तरीके से निक़ालते हे जो गलत हो जाता है भावना एक ही होता है पर शब्द अलग हो सकते है माना की हम अलग अलग है भावनाए अलग है पर इसे जोड़ कर नही रखगे तो हम कभी ताकतवर नही बन पायेगे।  .......AMIT KATHERIYA


धानुक समाज का सामाजिक उत्थान कैसे हो सकता है  
धानुक समाज के अंदर विश्वास की सख्त कमी है जिसकी वजह से हमेशा हम आपसी बिखराव की कगार पर होते है। हमारे अंदर जो आत्मविश्वास की कमी है वह प्राकृतिक है। क्योंकि ऐसी प्रवृती किसी दूसरे समाज में नहीं पायी जाती है। दुसरो की बातो को जल्दी ग्रहण करना भी बड़ी खामी है, दूसरे के बहकावे में जल्दी आ जाना, जिसका नतीजा हम आज तक भुगत रहे है। हमारी एकता ही हमारा उद्धार कर सकती है। जब तक हम लाखो की संख्या में एक नहीं होंगे हमारे समाज की भलाई नहीं हो सकती है। हमे आपस में सामंजस्य बनाना होगा, हमारी आपस की सहमति भी जरुरी है, हमारे समाज के लोगो का विश्वास भी जरुरी है। मेरी चिंता इस बात को लेकर भी है हम कितने असहनशील है, की हमे किसी एक व्यक्ति का सन्देश सही नहीं लगता है तो हम एक दूसरे पर दोषारोपण से भी बाज नहीं आते है।
हमारे कुछ सवाल है अपने समाज के कर्ता-धर्ता से जो निम्नलिखित है:
क्या हम ऐसे समाज को आगे ला पाएंगे?
क्या हमारे समाज की समझ एक तरह की हो पायेगी?
क्या हम कभी एक हो पाएंगे?
क्या हमारी मानसिकता एक होगी समाज को आगे लाने के लिए?
इस बात को हमारे समाज के लिए समझना पड़ेगा जिस समाज में 80-90% लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे आते है तो थोड़ा ध्यान रखा जाये। हमे सबको साथ लेकर चलना है लेकिन बहुतायत की बातो का समर्थन करते हुए आगे बढ़ना होगा। बिना पैसे के कोई सामाजिक कार्य नही हो सकता है मानते है लेकिन हमे यह भी समझना होगा की हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी है जिनकी आर्थिक स्तिथि वैसी नहीं है। क्योंकि उनके मन में हीन भावना पैदा ना हो इसीलिए सबका सहयोग और साथ जरुरी है। जब जरुरत होगी तब जो भी मजबूत होंगे समाज से वही तो मदद करेंगे। जब तक हम साथ नहीं चलेंगे हमारी कमजोरी सबको झलकती रहेगी। समाज एक व्यक्ति के कहने से ना तो आगे बढ़ता है और ना ही उसका उद्धार संभव है। समाज सबको साथ रखने से बढ़ता है। पैसा तो एक सीढ़ी है लक्ष्य तक पहुँचने के लिए और समाज को थोड़ा समय दे और सबको योगदान देने का मौका दे तभी समाज का भला होगा। हर आदमी बड़ा ही होता है, हर आदमी का अपना अपना योगदान है समाज के लिए, लेकिन हम यहाँ अपने समाज के लोगो के लिए इकठ्ठा हुए है। उनका सम्मान करना सीखना होगा हमे। कहते है हम जैसा खाते है, जैसा पहनते है, जैसे समाज के साथ रहते है उसी की वाणी हम बोलते है, हम भी उसी समाज से आते है तो हमे उसके बारे में सोचना होगा।

आप लोगो के सहयोग से हम अपने इस लक्ष्य में कामयाब होंगे। आपलोगो से हाथ जोड़कर करबद्ध प्रार्थना है की हम और आप आपस में प्यार बढ़ाये और एक दूसरे के सुख दुःख में साथ दे। हमारा लक्ष्य आपस में समाज के अंदर प्यार और सहिष्णुता और एकता स्थापित करना है। आज जिस दौर से हम गुजर रहे है यह दौर काफी संवेदनशील और नाजुक है जहाँ से हम अपने समाज के युवाओ को यह समझाने का प्रयत्न करे की हमें इस समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर इस देश के विकाश में योगदान करना है। हमारा भी बराबर का हक़ बनता है और इस संविधान ने यह बराबर का हक़ दिया है जीने का और हमे संवैधानिक तौर पर आगे बढ़ना पड़ेगा। किसी भी संगठन की मजबूती और उसका असर तब व्यापक होता है जब आप संख्या बल के स्तर पर उसे ज़मीन तक लेकर जाए। हमे अपनी ज़मीन तैयार करनी है, हमे अपने निचले तबके के भाईओं को जागना है। हमारी बहुत सारी कमजोरियां है जिससे हमे रूबरू होना अतिआवश्यक है। जिसके बिना हम अपने समाज के उथ्थान के बारे में सोच भी नहीं सकते।
जय धानुक, जय भारत।
..........................AMIT KATHERIYA


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योग की कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए

1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है। 2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है । 3. हाई वी पी में - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन ...