धानुक
जाती प्राचिन काल मे एक वीर कोम थी, जिसका कार्य सेना में धनुष बाण चलाना
अपनी अजीविका चलाना था। इसे जाति विशेष से संबोधित नहीं किया जाता था,
बल्कि एक समूह विशेष को जिसे धानुक आदि नाम से सम्बोधित किया जाता था।
धानुक जाति का उल्लेख कई जगह किया गया है। जैसे महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी पुस्तक पद्मावत में निम्न प्रकार उल्लेख किया है-गढ़ तस सवा जो चहिमा सोई,
बरसि बीस लाहि खाग न होई
बाके चाहि बाके सुठि कीन्हा,
ओ सब कोट चित्र की लिन्हा
खंड खंड चौखंडी सवारी,
धरी विरन्या गौलक की नारी
ढाबही ढाब लीन्ते गट बांटी,
बीच न रहा जो संचारे चाटी
बैठे धानुक के कंगुरा कंगुरा,
पहुमनि न अटा अंगरूध अंगरा।
आ बाधे गढ़ि गढ़ि मतवारे,
काटे छाती हाति जिन घोर
बिच-बिच बिजस बने चहुँकारी,
बाजे तबला ढोल और भेरी
महाकवि का कथन है कि किले के प्रत्येक कंगूरे पर वीर धनुर्धर बैठे हैं और
किले की रक्षा का भार उन्हीं पर है। उनके बाणों की जब वर्षा होती है तो
हाथी भी गिर जाते हैं।
....................................................................................................................Young social activist and thinkers Amit Katheriya
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डाॅ
रामशंकर कठेरिया सांसद आगरा को भारत सरकार के अनुसूचित जाति / जनजाति आयोग
का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने पर कठेरिया (धानुक) समाज की ओर से हार्दिक
बधाई एवं
शुभकामनाएँ।.........................................................................................................................Young
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साथियो,
आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात आप लोगो को बताने जा रहा हु।4 जनवरी 1945 को डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी बंगाल के कलकत्ता में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि "ब्राम्हण (हिन्दू ) परजीवी है !"हम कड़ी मेहनत करते है,वे हमारे श्रम का रस चूस लेते है।अगर आज़ादी इस शोषण का अंत नहीं कर सकती तो ऐसी आज़ादी मिले या न मिले कोई फर्क नहीं पड़ता!""
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के बयान से नेहरू और गांधी तिलमिला उठे,उन्होंने कई ब्राम्हणो को अपने अखबारों में लोगो को डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के बयान पर भड़कानेवाले खबरे लेख लिखने के लिए कहा। परिणाम वही हुआ की उत्तर भारत में ब्राम्हण आग बबूला हो उठे और दक्षिण भारत के ब्राम्हण भी बौखला उठे!!!
दक्षिण भारत में ब्राम्हणो ने जब डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के उक्त विधान का विरोध करना शुरू किया तब ओबीसी नेता पेरियार रामासामी नायकर मैदान में उतरकर आये और डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी का खुलकर समर्थन किया। इतना ही नहीं ओबीसी हिन्दू नहीं है ,वे भारत के असली मूलनिवासी है यह भी गर्व से कहा। पेरियार रामासामी जी ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के समर्थन में तुरंत 6 जनवरी 1945 को अपने कुड़ियारासु (रिपब्लिक) अखबार में संपादकीय लिखा उसका शीर्षक था :-क्या शोषित वर्ग हिन्दू है?..........................................................................................................................................................Young social activist and thinkers Amit Katheriya
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